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❖ सुविचार :- “अपने ज्ञान को साझा करना, यह एक तरह से अमरत्व को प्राप्त करने जैसा है”- दलाई लामा

Sunday, 30 January 2022

#शहीद दिवस

आज दिनांक 30/01/2022 को शहीद दिवस के अवसर पर आदरणीय प्राचार्य महोदय एवं शिक्षकगण द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

Friday, 28 January 2022

#आज की कहानी

बुराई में अच्छाई

एक शिष्य अपने गुरु से सप्ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया। 

 
शिष्य प्यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। शिष्य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्योंकि कुएं का जल बेहद मीठा और ठंडा था। 
 
शिष्य ने सोचा - क्यों ना यहां का जल गुरुजी के लिए भी ले चलूं। उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई।
 
गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और संतुष्टि महसूस की। उन्होंने शिष्य से कहा- वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्य को खुशी हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।
 
कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया

शिष्य बोला- गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने बेकार ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की।
 
गुरुजी बोले- बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में नहीं  है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब उस शिष्य ने जल पिया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा। यही बात महत्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा। पर मैं यह कहकर उसका मन दुखी करना नहीं चाहता था। 
 
हो सकता है जब जल मशक में भरा गया, तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते यह जल वैसा नहीं रहा, पर इससे लाने वाले के मन का प्रेम तो कम नहीं होता है ना।
 
कहानी की सीख - दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टाला जा सकता है और हर बुराई में अच्छाई खोजी जा सकती है

Wednesday, 26 January 2022

HAPPY REPUBLIC DAY ...

आप सभी को 73वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए....🇮🇳🇮🇳

Tuesday, 25 January 2022

Republic day parade registration...

All the students you are REGISTERING and watching online streaming of Republic Day Parade and Beating the Retreat -2022. Vote for the best marching contingent and tableau this Republic Day. Register and vote at www.mygov.in/rd2022  Express yourself!
Students you registered on yourself and get this certificate... For registration use this link www.mygov.in/rd2022

Monday, 24 January 2022

Happy National Girl child day.....


राष्ट्रीय बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाए...

National Girl child day celebration Photo

Sunday, 23 January 2022

राष्ट्रीय पराक्रम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.....

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिनके त्याग , तपस्या ,बलिदान से सिंचित इस वीर प्रसूता धरा पर आज हम सभी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।यह हम सभी का परम सौभाग्य है। ऐसे ही असंख्य वीरों के बलिदानों के हम सब ऋणी हैं। आदरणीय प्राचार्य महोदय और विद्यालय परिवार के सभी सदस्यों को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 125वें जन्मदिवस पर आप सभी को बहुत- बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं🙏

Monday, 17 January 2022

#आज की कहानी

नदी का घमंड

एक बार नदी ने समुद्र से बड़े ही गर्वीले शब्दों में कहा बताओ पानी के प्रचंड वेग से मैं तुम्हारे लिए  क्या बहा कर लाऊं ? तुम चाहो तो मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को उखाड़ कर ला सकती हूं ।

समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार आ गया है । उसने कहा, यदि मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़ कर ले आना । समुद्र की बात सुनकर नदी ने कहा, बस, इतनी सी बात ! अभी आपकी सेवा में हाजिर कर देती हूं । नदी ने अपने पानी का प्रचंड प्रवाह घास उखाड़ने के लिए लगाया परंतु घास नहीं उखड़ी । नदी ने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास किया पर घास बार-बार पानी के वेग के सामने झुक जाती और उखड़ने से बच जाती । नदी को सफलता नहीं मिली ।

थकी हारी निराश नदी समुंद्र के पास पहुंची और अपना सिर झुका कर कहने लगी, मैं मकान, वृक्ष, पहाड़, पशु, मनुष्य आदि बहाकर ला सकती हूं परंतु घास उखाड़ कर नहीं ला सकी क्योंकि जब भी मैंने प्रचंड वेग से खास पर प्रहार किया उसने झुककर अपने आप को बचा लिया और मैं ऊपर से खाली हाथ निकल आई ।

नदी की बात सुनकर समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, जो कठोर होते हैं वह आसानी से उखड़ जाते हैं लेकिन जिसने घास जैसी विनम्रता सीख ली हो उसे प्रचंड वेग भी नहीं अखाड़ सकता । समुद्र की बात सुनकर नदी का घमंड भी चूर चूर हो गया ।

विनम्रता अर्थात् जिसमें लचीलापन है, जो आसानी से मुड़ जाता है, वह टूटता नहीं । नम्रता में जीने की कला है, शौर्य की पराकाष्ठा है । नम्रता में सर्व का सम्मान संचित है । नम्रता हर सफल व्यक्ति का गहना है । नम्रता ही बड़प्पन है । दुनिया में बड़ा होना है तो नम्रता को अपनाना चाहिए । संसार को विनम्रता से जीत सकते हैं । ऊंची से ऊंची मंजिल हासिल कर लेने के बाद भी अहंकार से दूर रहकर विनम्र बने रहना चाहिए ।

शिक्षा:-
विनम्रता के अभाव में व्यक्ति पद में बड़ा होने पर भी घमंड का ऐसा पुतला बनकर रह जाता है जो किसी के भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाता । स्थान कोई भी हो, विनम्र व्यक्ति हर जगह सम्मान हासिल करता है । जहां विरोध हो जहां प्रतिरोध और बल से काम नहीं चल सकता । विनम्रता से ही समस्याओं का हल संभव है । विनम्रता के बिना सच्चा स्नेह नहीं पाया जा सकता । जो व्यक्ति अहंकार और वाणी की कठोरता से बचकर रहता है वही सर्वप्रिय बन जाता है ।

Friday, 7 January 2022

#आज की कहानी

*चरित्र*

एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।

एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।

दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।

तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की ‍नीयत निश्चित ही खराब हो गई है।

उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। राजा को इस सूचना से बड़ा आघात पहुँचा। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।

चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था।

यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा - 'सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।'

इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -'क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?' राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।

राजा का अगला प्रश्न था - 'आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार?' राजा ने पुन: पूछा - 'वे मोती कहाँ हैं?'
राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए।

राजा बोले - 'राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?

राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा - 'राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।

आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है। वह सब ज्ञान के कारण नहीं ‍अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है।

अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। कहा जाता है -

धन गया, कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्‍य गया, कुछ गया।
चरित्र गया तो सब कुछ गया।

Tuesday, 4 January 2022

#आज की कहानी

*सच्ची लगन*

 एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके।

चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा, कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया।
कपड़े बदलकर वापस सत्संग  की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले, फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया।
जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है।
इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया। 
पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें।
लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर  में दाखिल नही हुआ।
दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...?
दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि
मैं काल हूँ,
ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा।
काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था।
जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए।
जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए।
मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर  चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे,इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ।
अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर  पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं। 
क्यों....?
क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं।
उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया।
*क्यों...?*
क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।
इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था ! 
इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।
एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।
बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।
इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।

#समय की कीमत

समय की कीमत समय अनमोल है। जो समय का महत्व जानते हैं, वे पल-पल समय का सदुपयोग करते हैं। इससे संसार में किसी भी लक्ष्य को पाया जा सकता है। यह ...