Header

❖ सुविचार :- “अपने ज्ञान को साझा करना, यह एक तरह से अमरत्व को प्राप्त करने जैसा है”- दलाई लामा

Sunday, 28 January 2024

# प्रकृति का नियम

*हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी विकट परिस्थितियों से गुजरता है। ऐसी स्थिति में कुछ व्यक्ति बहुत जल्द ही निराश होने लगते हैं। कुछ व्यक्ति इसे ईश्वर की मर्जी मान लेते हैं। वैसे इंसान जो धैर्य खो देते हैं, उन्हें संकटों का सामना करने में मुश्किल होती है। फिर वे ईश्वर से सवाल करने लगते हैं कि यह जिंदगी ही क्यों दी और जिंदगी दी तो जिंदगी में इतने दुख क्यों दिए। दुख दिए तो दुख का निवारण क्यों नहीं हो रहा है?हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि अगर इस प्रकृति ने हमें जन्म दिया तो हम सभी इस प्रकृति की संतान हैं। इस प्रकृति को सबका ध्यान है। उसको सबका स्वभाव पता है। उसको सबकी क्षमता पता है। उसे यह भी पता है कि किसी को अस्तित्व में बनाए रखने के लिए उसके जीवन में कितना संघर्ष लाना आवश्यक है। अन्यथा व्यक्तिगत स्वभाव या प्रकृति के अनुसार अस्तित्व में बने रहने के लिए उसमें जरूरी क्षमता विकसित नहीं हो पाएगी। ठीक वैसे ही जैसे एक तितली इस दुनिया में आती है। अगर उस तितली के लिए चुनौतीपूर्ण क्षण किसी भी वजह से आसान हो जाए तो वह क्षण उसके लिए बेहतर है, लेकिन उसके बाद की चुनौती वह सह नहीं पाती है। चुनौतियां हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं।ओशो कहते हैं, कि 'अगर बहुत सुरक्षा मिले और कोई संघर्ष न हो तो रीढ़ टूट जाती है। रीढ़ - बनती ही संघर्ष में है। तुम जितना संघर्ष करते हो, उतनी ही तुम्हारी रीढ़ मजबूत होती है।' इसलिए हमें प्रकृति के नियम पर भरोसा रखना होगा। हमें ईश्वर पर भरोसा रखना होगा। वह बस यही चाहते हैं कि हमारा जन्म जिस उद्देश्य के लिए हुआ है हम उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाएं। हमेशा यह याद रखिए कि जिसके जीवन में अभूतपूर्व संघर्ष आया है, वही अभूतपूर्व सफलता के योग्य बन सकता है। वह उन करोड़ों लोगों से अलग है, जिसने उनकी तुलना में अपेक्षाकृत आसान एवं सुगम जीवन जिया है।*

Saturday, 27 January 2024

#वास्तविक संपदा

*सभी सुविधाओं युक्त भव्य मकान, शानदार वाहन, ऊंची आय, घर-बाहर के लिए सेवादार जैसी चलायमान वस्तुएं व्यक्ति की वास्तविक संपदा नहीं हो सकतीं। अनेक व्यक्ति इन्हें परम लक्ष्य मान कर आजीवन भ्रम और अंततः दुख में जीते हैं। बेचारे नहीं जानते, कालांतर में ये वस्तुएं क्षत- विक्षत हो सकती हैं। धर्म स्थलों के बाहर कटोरा थामे बैठे व्यक्तियों में उन नामी लोगों की संतानें भी हैं जिन्होंने बाह्य उपलब्धियों को सर्वस्व मान कर असल संपदा की अनदेखी की।स्वामी विवेकानंद ने कहा, समस्त परिसंपत्तियां, प्रशस्तियां, अलंकरण आदि छिन जाने पर भी व्यक्ति के पास जो बचा रहता है यानी उसका हौसला, वही मनुष्य की असल संपदा है। हाड़- मांस के आवरण में ढका उसका अमूर्त दैविक स्वरूप ही उसके जीवन को अर्थ देता है। इस संपदा में हमें सुमार्ग पर प्रशस्त रहने में सहभागी भी सम्मिलित हैं। ऐसे व्यक्ति में सतत् जीवंतता और आशा का संचार रहता है जिसके चलते वह चाहे तो समस्त खोया हुआ पुनः प्राप्त कर लेता है। लौकिक लक्ष्यों से अभिप्रेरित होंगे तो जीवन के अहम मूल्य उपेक्षित रह जाएंगे। लौकिक समृद्धि और शक्ति का अप्रिय पक्ष यह है कि इनके किरदारों में अहंकार आ जाता है। वह आत्मीय जनों सहित उन्हें भी कमतर आंकता है जिनकी सदाशयताएं सिद्ध रहीं। अपने पास क्या, कितना है, इसे जानने के स्थान पर लौकिक सुख-समृद्धि के उपासक का ध्यान इसी पर रहता है कि दूसरों के पास क्या-क्या है, जो स्वयं के पास नहीं है। यही चिंता उसे सताती है और उसके दुख का कारण बनती है।झड़ गए पत्तों को देख कर एकबारगी हरे-भरे वृक्ष का महत्व समझ आए या माता-पिता, परिजन के न रहने के पश्चात उनकी अतुल्य भूमिका का अहसास होना दूरदर्शिता नहीं है। जीवन की सार्थकता तब है जब हम स्वयं की सामर्थ्य, आज उपलब्ध साधनों-संबंधों को असल संपदा समझते हुए इनके प्रति कृतज्ञता का भाव संजोए रखें।*

Thursday, 25 January 2024

#आज की कहानी

सच्चा ज्ञान

*एक संन्यासी ईश्वर की खोज में निकला और एक आश्रम में जाकर ठहरा।पंद्रह दिन तक उस आश्रम में रहा, फिर ऊब गया। उस आश्रम के जो बुढे गुरु थे वह कुछ थोड़ी सी बातें जानते थे,रोज उन्हीं को दोहरा देते थे।फिर उस युवा संन्यासी ने सोचा,'यह गुरु मेरे योग्य नहीं, मैं कहीं और जाऊं। यहां तो थोड़ी सी बातें हैं, उन्हीं का दोहराना है।कल सुबह छोड़ दूंगा इस आश्रम को, यह जगह मेरे लायक नहीं।'लेकिन उसी रात एक ऐसी घटना घट गई कि फिर उस युवा संन्यासी ने जीवन भर वह आश्रम नहीं छोड़ा। क्या हो गया?दरअसल रात एक और संन्यासी मेहमान हुआ।रात आश्रम के सारे मित्र इकट्ठे हुए, सारे संन्यासी इकट्ठे हुए, उस नये संन्यासी से बातचीत करने और उसकी बातें सुनने।उस नये संन्यासी ने बड़ी ज्ञान की बातें कहीं, उपनिषद की बातें कहीं, वेदों की बातें कहीं।वह इतना जानता था, इतना सूक्ष्म उसका विश्लेषण था, ऐसा गहरा उसका ज्ञान था कि दो घंटे तक वह बोलता रहा। सबने मंत्रमुग्ध होकर सुना।उस युवा संन्यासी के मन में हुआ,'गुरु हो तो ऐसा हो। इससे कुछ सीखने को मिल सकता है। एक वह गुरु है, वह चुपचाप बैठे हैं, उन्हे कुछ भी पता नहीं।अभी सुन कर उस बूढ़े के मन में बड़ा दुख होता होगा, पश्चात्ताप होता होगा, ग्लानि होती होगी—कि मैंने कुछ न जाना और यह अजनबी संन्यासी बहुत कुछ जानता है।'युवा संन्यासी ने यह सोचा कि'आज वह बूढ़ा गुरु अपने दिल में बहुत—बहुत दुखी, हीन अनुभव करता होगा।'तभी उस आए हुए संन्यासी ने बात बंद की और बूढ़े गुरु से पूछा कि- "आपको मेरी बातें कैसी लगीं?"बूढे गुरु खिलखिला कर हंसने लगे और बोले-"तुम्हारी बातें? मैं दो घंटे से सुनने की कोशिश कर रहा हूँ तुम तो कुछ बोलते ही नहीं हो। तुम तो बिलकुल भी बोलते ही नहीं हो।"वह संन्यासी बोला-"मै दो घंटे से मैं बोल रहा हूं आप पागल तो नहीं हैं! और मुझसे कहते हैं कि मैं बोलता नहीं हूँ।"वृद्ध ने कहा- "हां, तुम्हारे भीतर से गीता बोलती है, उपनिषद बोलता है, वेद बोलता है, लेकिन तुम तो जरा भी नहीं बोलते हो। तुमने इतनी देर में एक शब्द भी नहीं बोला!एक शब्द तुम नहीं बोले, सब सीखा हुआ बोले, सब याद किया हुआ बोले, जाना हुआ एक शब्द तुमने नहीं बोला।इसलिए मैं कहता हूं कि तुम कुछ भी नहीं बोलते हो, तुम्हारे भीतर से किताबें बोलती हैं।'वास्तव में एक ज्ञान वह है जो उधार है, जो हम सीख लेते हैं। ऐसे ज्ञान से जीवन के सत्य को कभी नहीं जाना जा सकता।जीवन के सत्य को केवल वे जानते हैं जो उधार ज्ञान से मुक्त होते हैं।हम सब उधार ज्ञान से भरे हुए हैं।हमें लगता है कि हमें ईश्वर के संबंध में पता है। पर भला ईश्वर के संबंध में हमें क्या पता होगा जब अपने संबंध में ही पता नहीं है? हमें मोक्ष के संबंध में पता है। हमें जीवन के सभी सत्यों के संबंध में पता है। और इस छोटे से सत्य के संबंध में पता नहीं है जो हम हैं!अपने ही संबंध में जिन्हें पता नहीं है, उनके ज्ञान का क्या मूल्य हो सकता है?लेकिन हम ऐसा ही ज्ञान इकट्ठा किए हुए हैं। और इसी ज्ञान को ज्ञान समझ कर जी लेते हैं और नष्ट हो जाते हैं।आदमी अज्ञान में पैदा होता है और मिथ्या ज्ञान में मर जाता है, ज्ञान उपलब्ध ही नहीं हो पाता।दुनिया में दो तरह के लोग हैं,एक अज्ञानी और एक ऐसे अज्ञानी जिन्हें ज्ञानी होने का भ्रम है। तीसरी तरह का आदमी मुश्किल से कभी-कभी जन्मता है। लेकिन जब तक कोई तीसरी तरह का आदमी न बन जाए, तब तक उसकी जिंदगी में न सुख हो सकता है, न शांति हो सकती है।अतः अपनें भीतर की आभा से अवगत होनें हेतु एक मात्र आवलम्बन है, सद्गुरु की शरण में विह्वल प्रार्थना...

Tuesday, 23 January 2024

#पराक्रम दिवस

आज विध्यालय परिसर में पराक्रम दिवस के उपलक्ष्य में चित्रकारी प्रतियोगिता (ART Competition ) का आयोजन किया गया जो की प्राचार्या श्री मति गायत्री के दिशानिर्देसन में सफलता पूर्वक संपन्न हुआ  । 

Saturday, 13 January 2024

#आज की कहानी

आइंस्टीन के जो ड्राइवर थे, उन्होंने एक दिन आइंस्टीन से कहा- " सर,आप हर सभा में जो भाषण देते हैं, वह मैंने याद कर लिया है।'' 

-आइंस्टीन हैरान रह गये!

       फिर उन्होंने कहा, "ठीक है, मैं अगली बैठक में जहां जा रहा हूं, वे मुझे नहीं जानते, आप मेरे स्थान पर भाषण दीजिए और मैं ड्राइवर बनूंगा।"

 - ऐसे ही हुआ अगले दिन बैठक में ड्राइवर मंच पर चढ़ गई और ड्राइवर ने हूबहू आइंस्टीन की भाषण देने लगा....

    दर्शकों ने जमकर तालियां बजाईं.  फिर वे यह सोचकर गाड़ी के पास आए कि ड्राइवर आइंस्टीन है।

 - तभी एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा, ''सर, रिश्तेदार ने क्या कहा, क्या आप एक बार फिर संक्षेप में बताएंगे?''

 - असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा !!

    इस बार ड्राइवर पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वह हैरान रह गये....

     ड्राइवर ने उत्तर दिया.  -"क्या यह साधारण बात आपके दिमाग में नहीं आई? 

 मेरे ड्राइवर से पूछिए वह आपको समझाएंगे "

 नोट :  "यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं, तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति हो जाएगी...!!
#AlbertEinstein

#समय की कीमत

समय की कीमत समय अनमोल है। जो समय का महत्व जानते हैं, वे पल-पल समय का सदुपयोग करते हैं। इससे संसार में किसी भी लक्ष्य को पाया जा सकता है। यह ...